सामूहिक आघात से साझे संघर्ष तक पश्चिमी हिमालय में स्थित हिमाचल के किन्नौर ज़िले में युवाओं का अस्तित्व के लिए संघर्ष
सामूहिक आघात से साझे संघर्ष तक
पश्चिमी हिमालय में स्थित हिमाचल के किन्नौर ज़िले में युवाओं का अस्तित्व के लिए संघर्ष
मांशी आशर
हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में, राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे खड़े, बंसी लाल नेगी की नज़रें पहाड़ की तीखी पथरीली- मलबे से लैस ढलान से दौड़ती हुयी नीचे सतलज नदी पर जा रुकी. मानों कि २०२१ के उस भयावह दृश्य – जिसमें चट्टान से गिरे मलबे में दबी लाशों को खोज के निकाला जा रहा था – को फिर देख रहीं हों. बंसी लाल उन स्थानीय निवासियों में से एक थे जिन्होंने 11 अगस्त 2021 को हुए निगुलसरी भूस्खलन हादसे के राहत दल के साथ कंधे से कंधा मिला के एक हफ्ते तक राहत कार्य किया था. इस हादसे में वाहनों में दब के 28 लोगों की मृत्य हुयी थी, जिनमें अधिकतर स्थानीय निवासी शामिल थे.
निगुलसरी भूस्खलन त्रासदी
‘पहाड़ों में ढांक आती है (चट्टान गिरती है) तो नीचे से ऊपर की तरफ राहत काम शुरू करना होता है – पर हम स्थानीय लोगों की बात कौन सुनता है?’, बंसीलाल ने ऊँची आवाज़ में शिकायत करते हुए कहा. वो पहले भी ऐसे बाढ़ और भूस्खलन के हादसों में राहत और बचाव का कार्य कर चुके थे. अपने अनुभव को साझा करते हुए प्रशासन और राजनैतिक प्रतिनिधियों की, भूस्खलन त्रासदी के राहत कार्य में विफलताओं पर उन्होंने गहरा रोष व्यक्त किया. त्रासदी में राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे रुकी बस और गाड़िया मलबे की चपेट में आ गयीं थीं और HRTC बस खायी में जा कर दब गयी. राहत कार्य के शुरूआती दौर में ऊपर से मलबा हटा कर नीचे की ओर फेंका गया था – यह मान कर की बस शायद ऊपर ही दबी हो. इसके चलते नीचे लुढ़की बस और गहरी दबती गयी. स्थानीय लोग मानते हैं कि इससे बस में फसे लोगों की जान बचाने में देरी हुयी. बंसी लाल आज भी उन परिवारजनों के अघात और दर्द भरे चहरों को याद करते हैं जो अपनों की कटी-फटी लाशों को कपड़ों, जेवरों और शरीर के अंगों से पहचानने की कोशिश कर रहे थे. निगुलसरी के इस त्रासदी स्थल के किनारे अब गुज़रे लोगों की आत्मा की मुक्ति और शान्ति के संदेश वादियों में भेजते - कई सफ़ेद और लाल निशाँ (झंडे) घाटी की तेज़ हवा में लहराते हैं.
त्रासदी की सुबह तक संगीता की दो साल की बेटी वंशिका उसकी गोद में थी. कुछ महीनों पहले ससुराल में अनबन की वजह से वो चौरा गाँव अपने मायके आई थी. 11 अगस्त की सुबह उसकी ननद और सास उसे बुलाने आये – वो नहीं गयी पर बिटिया को ससुराल वाले अपने साथ ले गये. संगीता का दिल वैसे ही भारी था और फिर खबर आई की जिस सूमो वाहन (टैक्सी) में उसके ससुराल वाले अपने गाँव जा रहे थे वो निगुलसरी भूस्खलन घटना का शिकार हो गयी. बेटी, ननद और सास तीनों की मौत हो गयी. संगीता कहती है कि घटना के दो दिन तक तो उसे होश नहीं था कि उसके आस-पास हो क्या रहा है – बस अपने पति को संभालने और वंशिका के शव को हाथ में लेना भर याद है. संगीता फोन पर हस्ती हुयी वंशिका की पुरानी तस्वीर दिखाते हुए कहती है “उसके शरीर पर एक खरोंच तक नहीं थी’. संगीता, बेटी को खोने के साथ-साथ अपने पति से रिश्ते बिगड़ जाने का भी शोक मना रही है. गुमसुम आवाज़ में कहती है “वो मुझे और मैं उनको बेटी के जाने के लिए दोषी ठहराते रहे, तो अब साथ रहना भी मुश्किल लगता है”।
बांधों और सुरंगों की घाटी – सतलज
आम मान्यता है कि समय के साथ दुःख के घाव भर जाते हैं. परन्तु निगुलसरी जैसी घातक आपदाएं अब किन्नौर की सामूहिक चेतना और घावों का जैसे स्थायी हिस्सा बन गये हैं. निचार गाँव के मोहन नेगी मानते हैं कि “इधर- उधर पत्थर गिरने या ज़मीन धसने की घटनाएं तो कभी कभार पहले भी होतीं थी पर इस तरह इतनी गति से और आम जनजीवन पर प्रभाव डालते हुए बार-बार नहीं हुईं’। जिस जटिल और संवेदनशील भू-संरचना वाले क्षेत्र का नक्शा ही जलविद्युत बाँध परियोजनाओं के अंधाधुन्द निर्माण ने हमेशा के लिए बदल दिया हो, वहां भूस्खलन या मामूली बाढ़ से भयंकर नुकसान को ‘प्राकृतिक आपदा’ का नाम देना स्थानीय लोगों को चुभता है. आज के दिन किन्नौर जिले में 30 बड़ी-छोटी बाँध परियोजनाएं स्थापित हैं जिनसे तक़रीबन 4000 मेगावाट बिजली बन रही है. यह परियोजनाएं विकास और स्वच्छ ऊर्जा के नाम पर लगायी गयी हैं. स्थानीय समुदाय निगुलसरी में हुए भूस्खलन के लिए 1500 मेगावाट नाथपा झाकड़ी परियोजना को ज़िम्मेदार ठहराते हैं. मोहन जोड़ते हुए कहते हैं ‘क्या आप सोच सकते हैं एक 27 किलोमीटर लम्बी सुरंग, जिसमें सतलज का पानी बह रहा है - पर यहाँ से (निचार) ले कर चौरा तक के गाँव स्थित हैं और चार फुटबाल मैदानों के बराबर भूमिगत निर्माण ठीक हमारे गाँव के नीचे किया गया है,”।
35 वर्षीय सुनील भी निचार गाँव के निवासी और यहाँ की ब्लॉक पंचायत के अध्यक्ष हैं. वो कहते हैं, ‘परियोजना का निर्माण तेज़ी से समाप्त करने के लिए भारी बारूद से ब्लास्टिंग कर – पहाड़ के साथ, सारे विज्ञान और सुरक्षा के पैमानों की भी धज्जिया उड़ाई गयीं. 15 साल का था मैं तब – मुझे अभी भी याद है जब परियोजना निर्माण के लिए ब्लास्टिंग होती थी तो घर के दरवाज़े खिड़कियाँ हिलते थे. गाँव के रास्तों तक में दरारे पड़ गयीं, हर साल हम इनकी रिपेयरिंग करवाते हैं’.
दो हाई टेंशन ट्रांसमिशन लाईनें निचार और यहाँ से आगे के गावों के जंगल, घरों और सेब के बघीचों से हो कर जाती हैं – एक 300 मेगावाट बासपा और दूसरी 1000 मेगावाट करछम वांगतू परियोजना की. दोनों लाईनों के टावर लगाने के लिए क्षेत्र के लिए 4500 से अधिक पेड़ काटे गये. निचार गाँव के ऊपर धार पर हम कटे हुए देवदार के ठूठों के बीच खड़े हो कर सुनील की जुबानी सुनते हैं, ‘मैं 2012 में बीमार हो कर मर्चेंट नेवी छोड़ कर अपने गाँव वापिस लौटा था उस दिन मुझे पता चला कि ये देवदार के पेड़ ट्रांसमिशन टावर लगाने के लिए काटे जा रहे थे. जब ये नज़ारा खुद अपनी आँखों से देखा तो दो दिन तक ना खाना खा पाया ना ही सो पाया. जब हम बच्चे थे तो इसी जंगल में खेलने आते थे.’
बदलते माहौल के प्रभावों से जूझना
स्थानीय युवाओं का यहाँ के जीवन से अलगाव होने की चोट का असर गहरा मालूम होता है. तेज़ी से होते ‘विकास’ का प्रभाव पारम्पारिक अर्थव्यवस्था और समाज को सुनील जैसे युवाओं ने करीब से देखा और जी रहे हैं. एक समय था जब ज़मीन का बंटवारा रोकने के लिए इस जन जातीय क्षेत्र में ‘साझा’ (पोलीएंड्री) परिवार की प्रथा थी. परिवार के पुरुष अलग-अलग व्यवसायों में जुटे रहते थे – जिनमें कुछ भेड़-बकरी पालन के लिए दूर धारों में रहते थे और बाकी खेतीबाड़ी का काम देखते थे. आज के दिन, ख़ास कर सेब की बागवानी और आधुनिक शिक्षा आने के बाद स्थानीय समाज और अर्थव्यवस्था ने पलटी खायी है. ‘हमारे बुजुर्गों ने सोचा था की ये परियोजनाएं भी क्षेत्र में विकास लायेंगी और पहली पीढ़ी सोलन, चंडीगढ़ और शिमला पढ़ के जब वापिस आयेगी तो नौकरी कर के अपना पेट पालेगी.’ परन्तु जल विद्युत परियोजनाओं से ऐसे न मिलना इस क्षेत्र के युवाओं के लिए बहुत बड़ा धोखा साबित हुआ. आज कई बेरोजगारी से कुंठित युवा क्षेत्र में नशे की ओर बढ़ रहे हैं.
अन्य पहाड़ी क्षेत्रों के मुकाबले किन्नौर में सेब और मौसमी सब्जियों की नकदी खेती के चलते युवा बाहर शिक्षा हासिल कर वापिस जिले में ज़मीन पर काम करने लौटते हैं. परन्तु एक परिवार के पास औसतन 5-10 बीघा ज़मीन होती है – जिससे पूरे परिवार को पालना असंभव है – ख़ासकर जब भेड़पालन कम होता जा रहा है. ‘ बिजली उत्पादन कंपनियों द्वारा किया गया ७०% स्थानीय लोगों का रोज़गार का वादा तो झूठा था ही – ठेके और परियोजनाओं से जुड़े छोटे मोटे कामों से भी 5% प्रतिशत से कम लोगों को लाभ मिला’.
उलटा सेब के बगीचे, खेती और वन आधारित व्यवसाय भी इस परियाजनाओं और इससे जुडी आपदाओं के प्रभावों की जद में आ रहे हैं. ‘जब भूस्खलन की वजह से मुख्य मार्ग ही बंद हो जाता है तो लोग नकदी फसलें बाज़ार तक कैसे पहुँचाते. ऐसा 2021 में भी हुआ जब मटर की फसल सड़कों पर पड़े-पड़े सड़ने लगी. लोगों ने 500 रु. प्रति बोरा ढुलान दे कर पैदल रास्ते से मटर को गाड़ियों तक पहुँचाया. स्पिति और किन्नौर के सीमान्त क्षेत्रों को दुनिया से जोड़ने वाली जीवन रेखा है एन.एच 5 – अगर ये सड़क ही बंद हो जाये तो व्यवसाय भी ठप पड़ जाएगा.’ चौरा गाँव के प्रधान विजय नेगी का कहना है.
उमड़ता युवा आन्दोलन: ‘नो मीन्स नो’
पिछले दो दशकों जैसे-जैसे बाँध निर्माण इस जन जातीय घाटी में फैला – संघर्ष के स्वर भी साथ में बढ़ते रहे – फिर चाहे वो कोर्ट-कचहरी में या फिर सड़कों पर परियोजनाओं को चुनौती देते. परन्तु 2021 में घटी दो त्रासदियों (निगुलसरी से पहले सांगला घाटी के बटसेरी में दुर्घटना हुयी थी) ने ऊपरी किन्नौर के युवाओं को पूरी सतलज घाटी में आन्दोलन छेड़ने के लिए उकसाया. इन युवा आन्दोलनकारियों में शामिल था 25 वर्षीय सुन्दर जो बैंक की नौकरी छोड़ 2018 में अपने गाँव खदरा लौटा था. ‘टेबल कुर्सी वाली नौकरी से मैं जुड़ नहीं पा रहा था – कहीं न कहीं अन्दर से मुझे पता था की अपने घर जा के कुछ करना है. नौकरी छोड़ के आया तो रिश्तेदार और परिवार वाले बहुत नाराज़ हुए’. सुन्दर ने वापिस आने के बाद के दो सालों में गाँव में रिश्ते बनाना शुरू किया. गाँव की रोजमर्रा की समस्याओं और सामूहिक कार्यों की ज़रुरत को समझा. गाँव में लिंक रोड जो कई वर्षों से लटकी पड़ी थी उसका काम आगे बढ़ाने के लिए कार्यवाही में भागीदारी दी. 2020 में लॉकडाउन के दौरान अपने 18 परिवारों के छोटे से गाँव में सामूहिक रूप से कृषि के कार्य में जुड़ के सामूहिकता की समझ भी बनी. उसी दौरान सुन्दर ने अपने आस-पास के गाँव के दुसरे सक्रीय और सही सोच रखने वाले युवाओं के साथ भी रिश्ता बनाया जिसमें दिनेश और बुद्धा सैन शामिल थे. उन्होंने साथ मिल के पंचायत स्तर पर बदलाव के लिए काम करने की ठानी. “हमारी ऊर्जा देख कर राजनैतिक पार्टियों ने हमसे संपर्क किया पर हम स्पष्ट थे कि हम समाज के लिए और समाज के बीच ही काम करना चाहते हैं अपने स्वार्थ या पार्टी के एजेंडा के लिए नहीं.’ 2020 में दिनेश, रारंग से ब्लॉक पंचायत सदस्य चुना गया और सुन्दर, खदरा युवा क्लब का प्रधान बना.
इसी दौरान मूरंग क्षेत्र में जंगी ठोपन नाम की विशाल जल विद्युत् परियोजना की प्रस्तावना की खबर फैलने लगी. बुद्धा सैन, जो की 6 प्रभावित पंचायत में से जंगी के निवासी है, ने सवाल उठाया, ‘हमारे क्षेत्र में विकास परियोजनाओं के निर्माण का निर्णय पैसा क़ानून के अंतर्गत ग्राम सभा के हाथ में होते हैं’. अप्रैल 2021 में प्रभावित पंचायतों के सदस्यों ने एक सामूहिक बैठक में सतलज जल विद्युत् निगम (एस.जे.वी.एन) द्वारा निर्मित की जाने वाली इस इस 804 मेगावाट परियोजना का खुल के विरोध किया. एस.जे.वी.एन वही कंपनी है जिसने नाथपा-झाखड़ी परियोजना भी बनाई थी. प्रभावित गाँव के बुजुर्गों, युवा और महिला मंडलों की अगुवाई में परियोजना के सर्वे का काम शुरू होने से पहले स्थगित किया गया. इसके बाद से ले कर आज तक क्षेत्र में लगातार ग्राम सभाओं में परियोजनाओं के खिलाफ खुल के वक्तव्य दिए गये, प्रस्ताव पारित हुए, मंडी लोक सभा उपचुनावों का बहिष्कार किया गया, रिकांग पियो में महारैली का आयोजना किया गया और हिमाचल के विधानसभा चुनावों के दौरान भी जल विद्युत परियोजनाओं की खिलाफत का मुद्दा बना रहा.
पिछले दस पन्द्राह साल में जो परियोजना के प्रभाव लोगों ने सरकार के सामने लाये थे उस पर जब कोई नीतिगत बदलाव नहीं हुआ तो इस तरह का ज़मीनी आन्दोलन और जन अभियान उभरना ही था और इसे किन्नौर के युवाओं ने ‘नो मीन्स नो’ का ज़बरदस्त नारा दिया. ‘ऊपरी किन्नौर तो निचले क्षेत्र से और भी अधिक संवेदनशील है और वहाँ पर इस तरह का विनाशकारी निर्माण करना निहायती गलत होगा’, निचले किन्नौर के निचार गाँव के सुनील कहते हैं. इससे यह भी ज़ाहिर होता है कि यह केवल ऊपरी क्षेत्र, जहां अभी परियोजनाएं लगना बाकी है – केवल उन्हीं का आन्दोलन नहीं बल्कि इसके समर्थन में पूरी घाटी के लोग शामिल हैं. निगुलसरी त्रासदी के बाद सोशल मीडिया के माध्यम से किन्नौर के युवाओं ने इस आन्दोलन को रचनात्मक रूप से मुखर किया. 26 अगस्त 2021 को रिकोंग पियों में हुयी विशाल रैली में लहराया और आज भी घाटी में गूँज रहा – कहीं गाड़ियों पर चिपके पोस्टर पर, कहीं चट्टानों में रंगीन अक्षरों से तो कहीं टी-शर्ट पर छपा– ‘एक किन्नौर, एक आवाज़ – नो मीन्स नो’ का नारा.
लेखिका के बारे में:
मांशी आशर एक शोधकर्ता और कार्यकर्ता हैं. इन्होने हिमाचल में कार्यरत हिमधरा पर्यावरण समूह का सह-स्थापन 2010 में किया. ये पिछले दो दशकों से कई पर्यावरण और सामजिक न्याय के मुद्दों पर विभिन्न संगठनों के साथ कार्यरत रही हैं. पिछले 15 वर्षों से जल विद्युत् परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभावों का दस्तावेज़िकरण कर रही हैं. इनका घर धौलाधार की गोद में स्थित कंडबाड़ी गाँव में है. इनको पहाड़ों में प्रकृति, रोज़मर्रा ज़िन्दगी और खासकर महिलाओं के संघर्ष - इन मुद्दों से जुड़ी राजनीति के बारे सोचने – समझने और इनके बीच जीने में आनंद आता है.
सन्दर्भ सूची (रेफरेंसेस)
आशर मांशी, प्रकाश भंडारी - मिटिगेशन और मिथ? इंपैक्स ऑफ हाइड्रो पावर डेवलपमेंट एंड कंपनसेटरी अफॉरेस्टेशन ऑन फॉरेस्ट इकोसिस्टम्स इन द हिमालया - लैंड यूज पॉलिसी 100, 2020|
https://www.sciencedirect.com/science/article/abs/pii/S0264837719315819
हिमधरा पर्यावरण समूह, द हिडन कॉस्ट ऑफ हाइड्रोपावर, 2019 |
चंद्रसुता डोगरा, गवर्मेंट ऐपथी - फैनिंग प्रोटेस्ट अगेंस्ट हाइड्रो प्रोजेक्ट हिमाचल एक्सपोर्ट: पैनल, 5 फरवरी 2015|https://indianexpress.com/article/india/india-others/govt-apathy-fanning-protests-against-hydro-projects-himachal-experts-panel/
नरेंद्र कविलकृति, ‘नो मिंस नो रैली कवरेज’, 29 अगस्त 2021| https://www.youtube.com/watch?v=sgvAPBGqnm8
नरेंद्र कविलकृति, वीडियो फीचर ऑन स्पेशल ग्राम सभा जंगी अप्रैल 2022 5 जून, 2022| https://www.youtube.com/watch?v=sgvAPBGqnm8
किन्नौर लैंडस्लाइड- हेल्पलेसनेस अमंग फैमिली ऑफ दोस्ती ओल्ड ट्रैक्टर डीलर इन रेस्क्यू द ट्रिब्यून 12 अगस्त 2021,12 जून 2022|
https://www.facebook.com/watch/?v=4737513076375297&extid=CL-UNK-UNK-UNK-AN_GK0T-GK1C&ref=sharing
किन्नौर लैंडस्लाइड: हेल्पलेसनेस अमंग फैमिली ऑफ दोस फियर्ड ट्रैप्ड ऐलेज डीले इन रेस्क्यू, द ट्रिब्यून 12 अगस्त 2021, 12 जून 2022|
https://www.youtube.com/watch?v=TbZay5ohhks
क्यंग, वीडियो फुटेज ऑफ़ चौरा प्रोटेस्ट, ट्विटर एंडेंजर्ड हिमालय 17 सितंबर 2021, 13 जून 2022| https://twitter.com/EndangeredHimal/status/1438890456499191808
एस आर महापात्र, अतुल कोहली, विजय ठाकुर, अभिनव पूर्णिया, फील्ड नोट ऑन द रेकोंसेंस स्टडी ऑफ रॉक स्लाइड इंसीडेंस नियर निगुलसरी, 2021|
https://hpsdma.nic.in//admnis/admin/showimg.aspx?ID=3473
सर्विस कामा ट्रिब्यून न्यूज। डेथ टोल इन निगुलसरी लैंडस्लाइड रायसेस टू 28, द ट्रिब्यून, 17 अगस्त 2021|
https://www.tribuneindia.com/news/himachal/death-toll-in-nugalsari-landslide-rises-to-28-298765
शर्मा अश्वनी, विलेज इन हिमाचल प्रदेश इज़ बॉयकॉटिंग पोल्स दिस टाइम शिवाय आउटलुक 28 अक्टूबर 2021, 9 जून 2022|https://www.outlookindia.com/website/story/india-news-village-in-himachal-pradesh-is-boycotting-polls-this-time-heres-why/399080?fbclid=IwAR1eRiBDnfqV6Dij9FJ2Aw7W-wyqod4iz1tDfqO4QR9k5yBLFlm6rWqiYg0
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण हिमाचल प्रदेश, मेमोरेंडम ऑफ लॉस एंड डैमेज, स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी 2021| https://hpsdma.nic.in//admnis/admin/showimg.aspx?ID=3487